आरक्षण कोई भीख नही अपितु हमारा संवैधानिक अधिकार है। इतिहास एवं वर्तमान इस बात का गवाह है जो भी सत्ताधारी अथवा नीति-निर्धारक बना है, उसने अपने ही लोगों को लाभान्वित किया है। अपने स्वजातियों एवं सम्बन्धियों को ढूंढ-ढूंढ कर लाभ के पदों पर बैठाया है। अगर ऐसा न होता तो सरकार बदलते ही प्रान्तीय लोकसेवा आयोग, अधिनस्थ सेवा चयन आयोग, महिला आयोग आदि अन्य संस्थानों जहाँ पर उनके अध्यक्ष एवं सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार सरकार में निहित है, सत्ता परिवर्तन के फलस्वरूप उनके अध्यक्ष/सदस्य क्यों बदल दिये जाते हैं? इन परिस्थितियों में उपेक्षित समाज को उनके संवैधानिक अधिकार प्रदान कराने के निमित्त आरक्षण दिया जाना अनिवार्य है।

आरक्षण पर ए.आई.एम.सी.इ.ए. की नीति:

अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना: अनुसूचित जाति में ही क्यों?
१. सामाजिक सुरक्षा: आज भी हमारा समाज सामाजिक व्यवस्था में सेवाकार्य में ही लिप्त है। घृणित सेवा कार्य के कारण हेय दृष्टि से देखा जाता है। चूंकि वह आर्थिक विपन्नता एवं सामाजिक स्तर पर निम्नता का शिकार है, अतएव उसपर हर तरह के अत्याचार प्रतिस्थापित वर्ग द्वारा किये जाते हैं। किसी भी समाज का मूल्यांकन किसी व्यक्ति विशेष अथवा स्थान विशेष में रहने वाले उस समाज की स्थिति से नहीं किया जाता, बल्कि उनके सम्पूर्ण समाज की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक हैसियत के आधार पर होता है। यही कारण है कि यथा स्थिति सामाजिक व्यवस्था के विरोध स्वरूप हमारे समाज को बहुत से अत्याचारों का सामना करना पड़ता है। यदि अनुसूचित जाति में शामिल होकर उसे एस.सी एक्ट का आवरण मिल जाता तो हमारा समाज काफी हद तक अत्याचार से मुक्ति पा सकता है।
२. आर्थिक सुरक्षा: सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त होने से उसे आर्थिक सम्बल मिलेगा। यह आरक्षण नियुक्ति में ही नही पदोन्नति में भी प्राप्त हो जिससे आर्थिक आधार को मजबूती मिलेगी। यदि हम आर्थिक रूप से पिरपुष्ट होंगे तो सामाजिक परिवेश में सम्मान प्राप्त करने के साथ-साथ हर क्षेत्र में उन्नति की ओर अग्रसर होंगे।
३. राजनैतिक भागीदारी: आरक्षण प्राप्ति के पश्चात् एस.सी एस.टी. वर्ग की जातियां अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरुकता के कारण राजनैतिक एवं आर्थिक सृदृढ़ता प्राप्त कर चुकी हैं। परन्तु देश की आबादी का चार प्रतिशत नन्द समाज जो कि देश के कोने-कोने में आवासित है उसकी राजनैतिक भागीदारी शून्य है। इस भागीदारी के बगैर न तो उसकी सामाजिक पहचान बन पाई है और न ही वह आर्थिक सुदृढ़ता ही प्राप्त कर सका है। किसी महापुरुष का कथन सत्य है कि ‘‘ राजनिति की चाभी से सभी ताले खुलते हैं’’ एमसीइए चाहती है कि सत्ता की भागीदारी हमारी जनसंख्या के आधार पर हो और यह तभी सम्भव है जब हमें अनुसूचित जाति में शामिल होने का अवसर प्राप्त होगा। अनुसूचित जाति आरक्षण प्राप्ति की दशा में राजनीति के प्रत्येक क्षेत्र- ग्राम प्रधान से लेकर लोक सभा तक में हमारा समाज राजनीतिक जड़ें मजबूत करते हुये राजनैतिक संरक्षण एवं आर्थिक सम्बल प्राप्त कर सकता है। अनुसूचित जाति में शामिल करने में यदि कोई संवैधानिक विवशता है तो पिछड़े वर्ग के आरक्षण में सर्वाधिक पिछड़े वर्ग को छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप पृथक आरक्षण प्रदान करते हुये अनुसूचित जाति- जनजाति की भांति सुविधायें प्रदान किया जाय।
४. महिला आरक्षण: सबल सवर्ण का पहले राजनैतिक क्षेत्र के साथ-साथ प्रत्येक क्षेत्र में वर्चस्व था। आरक्षण के कारण उनका प्रतिनिधित्व कम होता जा रहा है, और सत्ता प्राप्ति में उसे अब कठिनाई होने लगी है। क्षींण होते प्रतिनिधित्व की प्रतिपूर्ति महिला आरक्षण से करना चाहता है। उसकी सोच है कि महिला आरक्षण का पूर्णतया लाभ आरक्षित वर्ग अभी उठा पाने की स्थिति में नहीं है अत: ३० प्रतिशत महिला आरक्षण के माध्यम से सवर्ण अघोषित आरक्षण से अपनी गद्दी सुरक्षित करना चाहता है। साथ ही महिला आरक्षण में आनुपातिक आरक्षण के खिलाफ है। महिला आरक्षण ३० प्रतिशत ही क्यों? एम.सी.इ.ए. चाहती है कि जनसंख्या के आधार पर महिला आरक्षण कम से कम ५० प्रतिशत होना चाहिए तथा इस आरक्षण में एस. सी. ओ० बी. सी., एम.बी.सी. के अनुपात में आरक्षण आवश्यक है ताकि उपेक्षित समाज के लोगों का शासक एवं सत्ताधारी बनने का स्वप्न साकार हो सके एवं सवर्ण सोच का पर्दाफाश हो सके।
५. देवालय के स्थान पर विद्यालय: धर्मभीरू समाज धार्मिक क्रिया कलाप की पूर्ति के लिए देवालय का निर्माण कराता है, धर्मशाला बनवाता है। इस कार्य में हमारे समाज का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। यह सभी देवालय एवं धर्मशालायें अर्थ लाभ के कारण झगड़े की जड़ होती हैं। इन पर कब्जा करने की होड़ लगती है। जिससे केवल प्रस्थापित वर्ग एवं दबंग लोगो का ही लाभ होता है। धर्मशालायें एवं देवालय के स्थान पर विद्यालय के निर्माण के परिणामस्वरूप संसाधन विहीन समाज के नैनिहालों को शिक्षा जैसें महत्वपूर्ण अधिकार सहजतापूर्वक सुलभ कराने के साथ ही साथ समाज के शिक्षित बेरोजगार युवक/युवतियों को रोजगार का सुअवसर प्राप्त करा सकते हैं।

चर्चा परिचर्चा

ए.आई.एम.सी.इ.ए.,उत्तर प्रदेश ने अपने स्थापना काल से लेकर अब तक अपने अधिवेशनों, सेमिनारों, विचार गोष्ठियों, अलंकरण समारोहों तथा बैठकों आदि में मुख्यतया निम्नलिखित विषयों को मुद्दा बनाकर उस पर गम्भीर चिन्तन- मनन किया तथा परिचर्चा/विमर्श हेतु नन्द समाज के लोगों के अतिरिक्त अन्य मनीषियों/विद्वानों/ राजनीतिज्ञों/समाज सेवियों को भी इसमें भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया। जिस पर सभी ने खुले रूप से अपने विचार प्रस्तुत किये एवं नन्द समाज का मार्गदर्शन किया, जिससे समाज लाभान्वित हुआ।

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