स्थापना:–
कराहती मानवता को समानता, बंधुत्व एवं प्रचलित घोर धार्मिक अंधविश्वास को दूर करने वाले तथागत गौतम बुद्ध एवं अर्हत् उपालि के विचारों से उपजी बौद्धिक क्रान्ति जहाँ समाज में नयी हलचल पैदा कर रही थी, वहीं इसके आधार पर राजनैतिक क्षेत्र में एक नई क्रान्ति का उद्भव हो रहा था। वर्तमान भारत उस समय अपना स्वरूप खोज रहा था। ऐसे समय में एक ऐसे युगदृष्टा का उदय हुआ जिसे इतिहास में प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्म नन्द के नाम से जाना जाता है। खण्ड-खण्ड में विभाजित भारत भूमि को एक सूत्र में पिरोकर अखण्डता का स्वरूप देने वाले महापद्म नन्द १६ महा जनपदों के महान शासक थे। इनके द्वारा स्थापित नन्द/मौर्य वंश का शासनकाल ३६४ ई० पू० से १८४ ई० पू० (नन्द/मौर्य वंश के अन्तिम शासक ब्रहद्रथ) तक रहा, जिसे भारत के इतिहास का स्वर्ण काल कहा जाता है।
वर्ष १९९४ में कुछ स्वजातीय बुद्धिजीवी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनन्द के नाम पर महापद्मनन्द कम्युनिटी इम्पालाइज एसोसिएशन, उ.प्र. की स्थापना की जो कालान्तर में महापद्म नन्द कम्युनिटी एजूकेटेड एसोसिऐशन, उ० प्र० के नाम से नन्द समाज में निरंतर सामाजिक चेतना जागृत करने का कार्य कर रही है।
एम.सी.इ.ए. ही क्यों?
उस समय नन्द समाज में भिन्न-भिन्न नामों से १५० से ज्यादा सामाजिक संगठन कार्यरत थे, उनका कार्यक्षेत्र बहुत सीमित क्षेत्र तक था। परन्तु नन्द समाज की समस्यायें प्रान्तीय एवं अखिल भारतीय स्तर की थीं तथा उन सामाजिक संगठनों के नाम से ‘‘गौरवशाली’’ होने का बोध नही होता था। तथाकथित ये सामाजिक संगठन जिन नामों से चल रहे थे वह हमारे समाज के होने के नाते पूजनीय तो हैं परन्तु अनुकरणीय नही हैं। महापद्म नन्द महान शासक होने के साथ-साथ हमारे समाज की अमूल्य निधि थे एवं हमारे समाज के लिए गौरव, आदर्श एवं अनुकरणीय हैं, अत: सम्यक, विचारोपरांत ए.आई.एम.सी.इ.ए. नाम से संगठन की नींव डाली गयी।
उद्देश्य:-
१. भारत के पीड़ित, शोषित नन्द समाज, जिसमें पढ़े-लिखे लोगों का जन्म हुआ है, को शोषकों एवं यथास्थितिवादी अत्याचारियों ने सदियों से उत्पीड़न कर इसे मजबूर एवं असहाय बनाया है, में महत्वाकांक्षा जगाना और उनकी सहायता करना।
२. प्रस्थापित वर्ग द्वारा इस समाज की जड़े पूर्णतया नष्ट कर दी गयी अतएव सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक तथा व्यवसायिक जड़ों को पुनर्जीवित कर मजबूत बनाना।
३. नैतिक मूल्यों का विकास कर उसे अपने आचरण से समाज व समाने एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर पीड़ित शोषित समाज के लिए एक चिरस्थायी प्रेरणा स्रोत बनाना।
४. योग्य एवं सही नेतृत्व का निर्माण करना।
५. पीड़ित शोषित समाज के उत्थान के लिए साधन और कौशल का विकास करना।
६. पीड़ित, शोषित समाज के मार्गदर्शन के लिये दिशा-निर्देशन केन्द्र बनाना, उसका विकास तथा संचालन करना।
७. समदु:खी जातियों के पढे-लिखे लोगों के मध्य समन्वय स्थापित कर उनमें वर्गीय भावना पैदा करना।
८. अति पिछड़े वर्ग को उसके हिस्से की आजादी एवं अधिकार दिलाने के लिए जन जागरण तथा रचनात्मक गतिविधियों का संचालन करना।
९. सर्वाधिक पिछड़े वर्ग की सृजनात्मक प्रतिभाओं का अनुसंधान करना।
१०. जन संस्कृति के निर्माण की दिशा में महापद्म नन्द, कबीर और भिखारी ठाकुर के सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना एवं उनके विकास के लिए जन अभियान चलाना।
११. सर्वाधिक पिछड़े वर्ग की हर लोकतांत्रिक समतावादी आकांक्षाओं को गति देना और उसकी पूर्ति के लिए जन अभियान चलाना।
१२. सम्पूर्ण भारत के नन्द समाज को संगठित करना।


नीति:-
१. प्रत्येक सदस्य को पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से संगठन के साथ रहना।
२. संगठन की बैठक, वैâडर वैâम्प, सेमिनार तथा वार्षिक अधिवेशन में प्रत्येक सदस्य की सहभागिता अनिवार्य।
३. संगठन/किसी व्यक्ति के विरुद्ध शिकायत उचित माध्यम से उठायी जाय।
४. आरोपित/किसी व्यक्ति द्वारा अपना पक्ष उचित सदन में रखा जाना तथा दोषी पाये जाने पर अपनी कमियों में सुधार लाना।
५. प्रत्येक निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से लिया जाना तथा निर्णयों का क्रियान्वयन अनुशासित ढंग एवं कड़ाई से किया जाना।


संगठन द्वारा सामाजिक उत्पीड़न के विरुद्ध उठाये गये कदम
१. ए.आई.एम.सी.इ.ए. अपने शैशव काल से ही अति पिछड़ो के लिए पृथक आरक्षण के लिए संघर्ष करता चला आ रहा है। नंन्द समाज में अपने अधिकार के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए लगातार वैâडर वैâम्प एवं प्रचार सामग्री उपलब्ध कराता रहा है। परिणामस्वरूप वर्ष १९९४ में यह संगठन मात्र कुछ ही जनपदों तक सीमित था, वहीं आज प्रदेश के लगभग समस्त जनपद आवृत्त हो गये हैं। आज प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के अधिकांश प्रदेश ए.आई.एम.सी.इ.ए. के नाम एव् कार्यशैली से भली-भांति परिचित हैं और कामना करते हैं कि यह संगठन शीघ्र ‘‘अखिल भारतीय स्तर’’ का स्वरूप प्राप्त कर ले ताकि इसी संगठन के झंडे तले नन्द/सविता/सेन समाज की भारतीय स्तर की लड़ाई लड़ी जा सके। वर्तमान में अन्य प्रदेशों में संगठन का विस्तार कर यह अखिल भारतीय रूप में आ चुका है। अभी तक संगठन उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना, हरियाणा एवं जम्मू कश्मीर तक पैâल चुका है और अन्य प्रदेशों में विस्तार/गठन की प्रक्रिया जारी है।
२. हमारा समाज ए.आई.एम.सी.इ.ए. की नीतियों/कार्यप्रणाली से प्रभावित होकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो चला है। फलस्वरूप यह सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत जबरन थोपे गये अमानुषिक एवं अमानवीय घृणित कार्यों के प्रति विरोध प्रकट कर रहा है, अर्थात सदियों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दे रहा है, जिसे प्रस्थापित वर्ग सहन नही कर पा रहा है। फलस्वरूप हमारे समाज पर तरह-तरह के अत्याचार किये जा रहे हैं जो कि आये दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। इनके प्रतिकार स्वरूप संगठन द्वारा पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने हेतु धरना/प्रदर्शन पत्राचार एवं समाज में चेतना जागृत करने के प्रयास किये जाते हैं। इनमें-नईमाबाद, बाराबंकी कांड, सीतापुर का बसई डीह कांड, घोरठ का गुड्डन कांड, आजमगढ़ भवानीपुर-कानपुर कांड के साथ प्रदेश के अन्य जिलों के प्रताड़ित स्वजातीय बंधुओं को न्याय दिलाने हेतु हर संभव प्रयास किया गया एवं किया जाता रहेगा। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित कांडों पर भी ए.आई.एम.सी.इ.ए. ने स्वत: एवं सकारात्मक कदम उठाते हुये दोषी को दण्डित कराने एवं पीड़ितों को न्याय दिलाने का कार्य किया है।


१. रायबरेली कांड- मनु बी.डी.सी. की हत्या ब्राह्मणों द्वारा की गई।
२. झाँसी कांड- एक बालिका के साथ दुर्व्यवहार कर उसकी नृशंस हत्या कर दी गई।
३. फिरोजाबाद कांड- एक ही परिवार के मुखिया सहित चार लोगों की जघन्य हत्या कर दी गई तथा दो सदस्य मरणासन्न थे।
४. जौनपुर कांड- एक व्यक्ति को ब्राह्मणों द्वारा जिन्दा जला दिया गया फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।
५. महराजगंज कांड- एक लड़की का दबंगों द्वारा अपरहण कर लिया गया।
६. हाथरस कांड- प्रधान द्वारा दबंग ब्राह्मणों को चौथ (गुण्डा टैक्स) ने दिये जाने पर उनके साथ मारपीट कर अधमरा कर दिया गया।
७. कुशीनगर कांड- महिला के साथ दुष्कर्म में सफल न होने पर गंभीर रूप से घायल कर दिया।
८. जनपद इलाहाबाद के बहरिया थाना अन्तर्गत दबंगों ने ११/०६/२०१४ को एक महिला को अनुचित फब्तियों के विरोध स्वरूप गोली मारकर हत्या कर दिया।

९. जनपद कानपुर के कल्याणपुर थाना अन्तर्गत दबंगों द्वारा सिया दुलारी की बर्बर हत्या कर दी गयी।
१०. जनपद रायबरेली के महराजगंज थाना अन्तर्गत परजावट कार्य न किये जाने से दबंगो द्वारा कई परिवारों को उजाड़ दिया गया।
११. जनपद जालौन में युवक पर अनर्गल आरोप लगाकर उसका सिर मुंड़वाकर गधे पर बिठाकर गाँव में घुमाया गया उसे भारीरिक व मानसिक यातनायें दी गईं।
१२. जनपद इलाहाबाद में ही ३१/०१/२०१६ को मेजा थाना अन्तर्गत एक नाबालिग बच्ची के साथ दुराचार के बाद उसे जला दिया गया।
१३. जनपद फिरोजाबाद में १८/०२/२०१६ को एक लड़की के साथ दबंगों ने दुराचार किया।
१४. जनपद गोरखपुर में एक युवक के ऊपर सरेआम मिट्टी का तेल डालकर जला दिया गया।
आदि इनके अनेकों ज्वलंत उदाहरण हैं। ए.आई.एम.सी.इ.ए. ने ऐसे तमाम घटनाओं के बारे में विस्तृत रिपोर्ट मंगा कर उनपर स्वत: कार्यवाही किया तथा सर्वेक्षण कराया तो उनके परिणाम चौंकाने वाले निकले। टीमों के सर्वेक्षण न सिर्फ चौंकाने वाले हैं बल्कि एक गम्भीर चिन्तन के लिए भी प्रेरित करते है। अति पिछड़ों के दमन के पीछे के कारणों में सब से बड़ा कारण उनका भूमिहीन होना, परजावट का कार्य करना, उनके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और दिशा युक्त राजनीतिक जागरुकता का अभाव रहा है। अति पिछड़ों (प्रजा-जातियों) की मुक्ति के लिए कर्पूरी ठाकुर के फारमूले के आधार पर पृथक आरक्षण लागू करने के लिए आप जहाँ जैसी भी स्थिति में हैं, वहाँ उनके पक्ष में माहौल बनायें और उनकी पूर्ति के लिए एक सामाजिक सांस्कृतिक जन आंदोलन चलाने की आवश्यकता है।


३. एम.सी.इ.ए नन्द समाज ही नहीं, अपितु शोषित, पीड़ित एवं समदुखी अन्य समाज को सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकार प्राप्त करने हेतु समाजिक चेतना जागृत करती है। अति पिछड़ा समाज जिसका उत्तर प्रदेश की आबादी में लगभग ४० प्रतिशत हिस्सा है, को अधिकार दिलाने हेतु अति पिछड़ो के लिए अलग आरक्षण हेतु आवाज अपने जन्म-काल से ही उठाती रही है। इसी प्रयास के फलस्वरूप वर्ष २००१ में तत्कालीन मुख्यमंत्री मा० राजनाथ सिंह द्वारा अति पिछड़ों के लिए पृथक आरक्षण की घोषणा की गई जो किन्ही कारणों से लागू नहीं हो सकी। ए.आई.एम.सी.इ.ए. ने उन्हें सम्मानित करने के लिए दिनांक ९ सितम्बर २००१ को लखनऊ में नन्द समाज का महा सम्मेलन आयोजित किया।
४. देश के आजाद होते ही राजाओं की राजगद्दी चली गई और राजा समाप्त हो गये परन्तु अभी प्रजा विद्यमान है। प्रजा स्वरूप नन्द समाज को आज भी अमानवीय व घृणित पेशा ‘‘परजावट’’ करना पड़ रहा है, जिससे उनमें हीन भावना व्याप्त है और साथ ही आर्थिक स्थिति में लगातार गिरावट हो रही है। अत: ए.आई.एम.सी.इ.ए. द्वारा नन्द समाज की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, व्यवसायिक एवं राजनैतिक जड़ों को ‘‘ वैचारिक एवं सामाजिक क्रान्ति’’ के माध्यम से पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से वर्ष २००४ में १९/०९/२००४ से ०२/१०/२००४ तक ‘‘परजावट के विरोध में’’ लखनऊ से मिर्जापुर तक’’ कर्पूरी ठाकुर जनजागरण साइकिल यात्रा ’’ का सफलता पूर्वक आयोजन किया गया, जिसका शोषित पीड़ित नन्द समाज पर व्यापक असर हुआ।
५. नन्द समाज के पुरोधा यदि यथास्थितिवादी शक्तियों के बहकावे में न आते और डा० अम्बेडकर की बात मान लिये होते और अनुसूचित जाति में शामिल हो गये होते तो हमारा समाज पिछड़े वर्ग का सबसे समृद्ध एवं शक्तिशाली समाज होता। परन्तु पुरानी बातों से क्या फायदा। फिर भी, आज समाज के कुछ लोग समाज के झूठे घमण्ड और सम्मान के चलते अनुसूचित जाति में शमिल होने का विरोध करते हैं, जबकि हम यदि एस.सी. में शामिल हो गये होते तो शैक्षिक, आर्थिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में अधिकतम लाभ प्राप्त करने के साथ एस. सी. एक्ट से आवृत्त होकर सुरक्षित होते एवं सामाजिक सम्मान प्राप्त कर रहे होते। वर्ष २००५ के अक्टूबर माह में उ०प्र० के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा १४ पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया। जिसमें नाई समाज को शामिल नहीं किया। परिणाम स्वरूप नन्द समाज में सामाजिक चेतना का उबाल पैदा हो गया तथा नाई समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने हेतु जनपद सीतापुर के जागरुक एवं उत्साहित नवयुवकों द्वारा कड़ा विरोध प्रकट किया गया। तत्पश्चात् उसी क्रम में दिनांक ०७/१०/२००५ से १४/११/२००५ तक विधान भवन के सामने आमरण अनशन चलाया गया। जिसमें ए.आई.एम.सी.इ.ए. की भूमिका मेरुदण्ड की रही। वर्तमान में एम.सी.इ.ए. का एक सूत्रीय कार्यक्रम ‘‘नाई समाज को अनुसूचित जाति में शामिल ’’ कराने का है तथा इस कार्यक्रम में अग्रेतर कार्यवाही चल रही है। इस मामले में दो बार मा० संसद सदस्या श्रीमती सोनिया गांधी से भेंट वार्ता की जा चुकी है। इसके पश्चात मा० राहुल गांधी से मिलकर इस विषय पर चर्चा की गई तथा ज्ञापन दिया गया।
६. स्थापना वर्ष १९९४ से ही निरन्तर प्रत्येक वर्ष ए.आई.एम.सी.इ.ए. का वार्षिक दो दिवसीय अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है। इन अधिवेशनों में संगठन की वार्षिक गतिविधियों/उपलब्धियों पर परिचर्चा के साथ-साथ संगठन द्वारा कार्यक्रमों/ज्वलंत समस्याओं की गहन समीक्षा करते हुए प्रदेश के कोने-कोने से आये प्रतिनिधियों /सदस्यों के आपसी मिलन, प्रेम भाव प्रदर्शित करने का यह अधिवेशन मूल स्रोत बनता है, जो हमारी सामाजिक पहचान बनने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
७. प्रदेश के मण्डलों तथा जनपद स्तर पर प्रतिभा सम्मान एवं अलंकरण समारोहों का आयोजन कराया जाता है। प्रदेश स्तर पर कर्पूरी ठाकुर जयंती समारोह का भी आयोजन किया जाता है। प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्म नन्द की भी जयंती मनाना प्रारम्भ कर दिया गया है।

ए.आई.एम.सी.ई.ए., उ.प्र. के अब तक सम्पन्न हुये अधिवेशनों का विवरण

अधवेशनदिनांकस्थान
प्रथम१८.१९/१२/१९९४लखनऊ- उमराव सिंह धर्मशाला, डालीगंज
द्वितीय०९.१०/१२/१९९५पैâजाबाद- नरेन्द्रालय प्रेक्षा गृह, रिकाबगंज
तृतिय२५.२६/१२/१९९६आगरा खण्डेलवाल भवन, शाहगंज
चतुर्थ२५.२६/१२/१९९७वाराणसी- पूर्वोत्तर रेलवे, प्रेक्षागृह
पंचम१३.१४/१२/१९९८लखनऊ- गांधी भवन
छठवाँ२३.२४/०१/२०००लखनऊ- गांधी भवन
सातवाँ२३.२४/१२/२०००मिर्जापुर- स्वागत भवन, रतनगंज
आठवाँ२४.२५/१२/२००१बरेली- संजय कम्युनिटी हाल
नवाँ२८.२९/१२/२००२लखनऊ- गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल, अमीनाबाद
दसवाँ२५.२६/१२/२००३आजमगढ़- डी.ए.वी. पोस्ट ग्रेजुएट कालेज
ग्यारहवाँ२४.२५/१२/२००४गोरखपुर- चित्रगुप्त मंदिर एवं धर्मशाला
बारहवाँ२४.२५/१२/२००५चन्दौसी- साहू झुन्नीलाल धर्मशाला, मुरादाबाद
तेरहवाँ१६.१७/१२/२००६मेरठ- प्यारे लाल शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट
चौदहवाँ२३.२४/१२/२००७फिरोजाबाद- मदीना पैलेस
पन्द्रहवाँ२४.२५/१२/२००८लखनऊ- गांधी भवन
सोलहवाँ२३.२४/०१/२०१०शिकोहाबाद- पालीवाल इंटर कालेज, फिरोजाबाद
सत्रहवाँ२५.२६/१२/२०१०इलाहाबाद- कोरल क्लब, उत्तर मध्य रेलवे
अठारहवाँ१२.१३/११/२०११सीतापुर- सुमंगलम गेस्ट हाउस
उन्नीसवाँ०८.०९/११/२०१३लखनऊ- गांधी भवन
बीसवाँ२७.२८/१२/२०१४लखनऊ- गांधी भवन
इक्कीसवाँ१४.१५/११/२०१५हाथरस- राजरानी मेहरा गेस्ट हाउस
बाइसवाँ१६.१७/१२/२०१७कुशीनगर- विवाह भवन/लॉज नगर पालिका, परिषद
तेइसवाँ२३.२४.२५/११/२०१८लखनऊ- गांधी भवन
रजत जयंती अधिवेशन
चौबीसवाँ२४ एवं २५.१२.२०२२मुरादाबाद मंडल के रामपुर में स्थान- आर.के पैलेस, तीन बत्ती चौराहा, बिलासपुर रोड, मिलक, रामपुर


अपरिहार्य कारणों से वर्ष २०१२ व २०१६ में अधिवेशन नहीं कराया जा सका। वर्ष २०१९ में राज्य अधिवेशन के स्थान पर सभी मंडलों में एक दिवसीय मंडलीय अधिवेशन कराया गया।
वर्ष २०२० व २०२१ में कोरोना महामारी के कारण अधिवेशन नहीं हो सका।

Categorized in: